महानतम मुक्केबाज “मुहम्मद अली” यूं ही नहीं कहते थे कि “मैं महान हूं”, जाने ऐतिहासिक किस्से

प्रसिद्ध मुक्केबाज मुहम्मद अली का जन्म 17 जनवरी 1942 में कैसियस मार्सेलस क्ले के रूप में संयुक्त राज्य अमरीका में हुआ था कुछ समय बाद उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था । मुहम्मद अली के मुकाबले बहुत प्रसिद्ध होते थे l लोग अक्सर उन्हें ‘जंगल में गड़गड़ाहट ‘ ‘मनीला का रोमांच ‘ जैसी उपाधियां दिया करते थे ।  अली एक बात को हमेशा दोहराते रहते थे की में महानतम हूं और बहुत कम लोग ही ऐसी रहे होंगे जो उनकी इस बात से सहमत नही थे ।
अली के मुक्के

अली के मुक्के इतने दमदार और स्फूर्त होते थे की वे एक बार में किसी को भी थिथिल कर देते थे । अली ने संपूर्ण विश्व को अपनी मुक्केबाजी से हैरान करने का वचन दिया था और उन्होंने इससे बखूबी निभाया ।  वे मुक्केबाजी की दुनिया में एक चैंपियन बन गए । ताउम्र अपने शरीर पर मुक्के खाने का प्रतिफल भी शायद अली को 74 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह के भुगतना पड़ा । इस कठिन दौर में भी वे दुनिया पर अपनी छाप छोड़ रहे थे जब उनके लिए कुछ कह पाना सांस ले पाना मुश्किल था वे तब अपनी मुस्कुराहट बिखेर रहे थे । ऐसा भी कहा जाता है की अली मुहम्मद मुक्केबाजी शब्द के समानार्थी थे ।
अली का पारिवारिक जीवन

मोहमद अली के 9 बच्चे हैं जिनमे उनकी एक बेटी है और वो भी विश्व चैंपियन बॉक्सर  है । अली ने कुल 4 शादियां की थी उनकी पहली पत्नी सोंजी रोई जिनके साथ अली का रिश्ता केवल 2 वर्ष तक रहा उसके पश्चात उन्होंने बेलिंडा बायड से शादी की थी और उनकी 4 संताने थी । उनकी तीसरी अर्धांगिनी का नाम वोरोनिका पोर्श था उनकी 2 संताने थी अली के साथ अपनी चौथी बीवी विलियम्स के साथ उन्होंने एक पुत्र को गोद लिया था ।
अली का आखिरी सफर

अली मुहम्मद मुक्केबाजी की दुनिया के बादशाह रह चुके थे  ऐसे में उन्होंने अपने शरीर के साथ अपने सिर पर भी अनगिनत मुक्के सहे होंगे जिसके कारण उन्हें पाकिर्सन जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ना पड़ा । इस बीमारी के कारण 1981 में अली का शरीर बहुत कमजोर हो गया था और उनकी आवाज में काफी बदलाव आ गए थे लगभग उनकी आवाज बंद हो गई थी । इस हफ्ते के आखिर में उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया इस दौरान उनके बच्चे उनके साथ ही थे।
अली का जीवन सफर
एक बार अली ने स्वयं एक जांच के बाद बताया था की अब एक उनके मुक्केबाजी के सफर में उन्होंने लगभग 29000 मुक्के सहे और 5 करोड़ 70 लाख डॉलर की कमाई की ।
कई मुकाबलों में अली ने हैबिटेट चैंपियनशिप जीती। वे सदैव अश्वेत लोगों के न्याय के लिए लड़ते रहे किंतु उन्होंने वियतनाम युद्ध में शामिल होने नकार दिया । अली इतना अस्वस्थ होने के बावजूद दुनिया घूमना पसंद करते थे । वे अब मुक्केबाजी तो नही कर सकते थे किंतु अपने नेत्रों की चमक और हृदय की मुस्कान से लोगों को अपनी बात समझाते थे। अली ने सर्वप्रथम मुक्केबाजी करने का फैसला एक छोटी सी उम्र 12 साल की उम्र में ही ले लिया था क्योंकि वे अपनी नई साइकिल के चोर को मज़ा चखाना चाहते थे । उस दौरान उनका वजन 40 किलोग्राम था । लेकिन उस वक्त एक पुलिसकर्मी मार्टिन ने उन्हें अभ्यास में सहायता की और 1960 के दशक में उन्होंने लाइट हैबीटेट में स्वर्ण पदक हासिल किया।
द ग्रेटस्ट
अपनी आत्मकथा द ग्रेटेस्ट में अली ने एक  किस्से का जिक्र करते हुए बताया है की एक बार मोटर साइकिल पर सवार श्वेत लोगों ने उनके साथ झगड़ा किया था तब उन्होंने अपना पदक ओहियो नदी में गिरा  दिया था । अली बताते हैं की एक वक्त पर उनका कद 6 फीट 3 इंच और वजन लगभग 96 किलोग्राम था। वे मुक्केबाजी में इतने माहिर हो चुके थे की खतरनाक खिलाड़ी जॉर्ज फोरमैन और सोनी लिस्टन को कई बार हराया । दुनिया को हैरान कर देने वाली एक घोषणा की वे अश्वेत मुस्लिमों के सदस्य हैं उन्होंने 1964 में की ।
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Vipul Kumar

मैं एक हिंदी और अंग्रेजी लेखक और फ़्रंट एंड वेब डेवलपर हूं। वंदे मातरम

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